Saturday, May 11, 2013

चीनी चले गये

किसी के सवाल: 
अंततः भारतीय विदेश निति और दबाब काम आयी, चाइना ने अपने तम्बू उखाड़ लिए और उसे पतली गली से निकलना ही पड़ा …..इसे कहते हे कूटनीति ………और एक सरकार पहले थी तब 125 किलोमीटर हिंदुस्तान की सीमा में घुस गये थे पाकिस्तानी ……कारगिल जेसा युद्ध दिया हजारो सेनिको को मरवा दिया ………..फिर उसी पाकिस्तान के मुशरफ को हिंदुस्तान बुलवाया और उसका सम्मान किया ! क्या हर बात का जबाब युद्ध है ?

मेरे जवाब: 

जब कारगिल में कायर पाकिस्तानी घुसे थे तो हमारे योद्धाओं ने उनके खून की होली खेली थी . फौजियों के लिए मौत “वीरगति” कहलाती है; मातम मनाने की बात नहीं होती. चीनी सैनिक अपनी मर्जी से घुसे, भारत सरकार को उसकी औकात बताई, और जब मन भर गया तो चले गये. (तथ्य है कि भारत ने जितनी “फ्लैग मीटिंग्स” बुलाई उसमे कोई समाधान नहीं निकला. जाने से पहले चीनियों ने “फ्लैग मीटिंग” बुलाई, और वो चले गये।) हमारी सरकार अपने मंत्रियों को भ्रस्टाचार के आरोपों से बचाने में अपनी सारी शक्ति व्यर्थ करती है. सेना के सच्चे सपूत जनरल वी के सिंह जी को जिस तरह उन्होंने ज़लील किया वो हम सब जानते हैं। ये अहिंसा के पुजारी नहीं (वरना सारे भारत-पाक युद्ध इन्होने नहीं लडे होते), बल्कि इनकी हिम्मत नहीं कि नेहरु जी के “हिमालयन ब्लंडर” के बाद चीन से नजरें भी मिला सकें। 

इन्हें कूटनीति आती तो आज सरबजीत सिंह जिन्दा होता; पाकी सेना हमारे वीरों का सर काट कर अमन से न रह रही होती, और बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश जब मन में आए हमें ठेंगा नहीं दिखा रहे होते. 

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