Saturday, December 28, 2019

नगरकिता कानून पर कविता

अपने पैरों पर रहे स्वयं कुल्हाड़ी मार,

फांस गले की बन गया उनके एनपीआर।

उनके एनपीआर आम जन को भड़काया,

पता चल रहा आज खुदै कानून बनाया!

लगा देश में आग देखते ऊंचे सपने,

फंसते ऐसे लोग जाल में खुद ही अपने।

- ओमप्रकाश तिवारी / दैनिक जागरण

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