आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आ.आ.पा. ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की और पार्टी में घमासान छिड़ गया। उम्मीदवारों की सूचि में दूसरी पार्टियों से आए हुए "इम्पोर्टेड" या "भगोड़े" नेताओं को बड़ी संख्या में टिकट दी गई है।
क्या पार्टी ने पैसे लेकर सीटों को नीलाम कर दिया है? पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता यह सोच कर परेशान हैं। और ऐसा हो भी सकता है। पिछली विधानसभा में ७० में से ६७ सीट जब पार्टी के पास हो, तो ८-१० सीट अगर पैसे वाले मोटे असामियों को दे दिया जाय तो भी क्या फर्क पड़ेगा? ऐसे में आ.आ.पा. के कुछ नेताओं के वक्तव्य पढ़िए:
- पार्टी ने इस बार 15 विधायकों को टिकट नहीं दिया है
- कांग्रेस से आए छह लोगों को टिकट दिया है
- एक सीट पर बीएसपी से आए नेता टिकट दिया है
- इस बार दो बड़े मिठाई वाले भी मैदान में हैं
- सोमवार को ही कांग्रेस व बसपा से पांच नेता आप में आए थे। आप ने इन सभी को टिकट दिया है
- विधायक एनडी शर्मा ने टिकट न मिलने पर आप से इस्तीफा दे दिया
- हरि नगर सीट: विधायक जगदीप सिंह का टिकट काटा है
- कांग्रेस से आए दीपू चौधरी को अनिल वाजपेयी के पार्टी छोड़ने से टिकट मिला है
फिलहाल तो पार्टी में टूट-फूट की बड़ी सम्भावनाएँ दीखती हैं। कार्यकर्ताओं और निकाले गए नेताओं का असंतोष अगर जमीन पर असर दिखाता है तो इसका चुनाव परिणामों पर असर दिखना तय है। फिलहाल "एंटी इंकम्बेंसी" के कारण भी आ.आ.पा. का वापस चुनाव जीतना मुश्किल लग रहा है। और ऐसे में भगोड़े नेताओं को टिकट बाँटना पार्टी को और गर्त में ले जायेगा।
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