Thursday, January 16, 2020

दिल्ली : सरकारी अस्पतालों की बुरी हालत; बन रहे अस्पताल नहीं हो सके तैयार; ऊपर से पानी की कमी: राज्य सरकार जिम्मेदार

राजधानी में ढांचागत विकास के क्षेत्र में तेजी से काम किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। यहां आज भी एक बड़ी आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है। इसका फायदा टैंकर माफिया उठाते हैं। वहीं बात अगर स्वास्थ्य सेवाओं की करें तो जनसंख्या के लिहाज से न अस्पताल मौजूद हैं और न ही बेड हैं। स्थिति यह है कि अक्सर मरीजों को बेड शेयर करना पड़ जाता है। ऐसे में राजधानी में नए अस्पतालों का निर्माण कराने व जलशोधन यंत्र लगाने पर सरकार को गंभीरता से काम करना होगा।

अधूरे पड़े काम

ढांचागत विकास आगे नहीं बढ़ पाया है, जिन अस्पतालों का निर्माण कार्य चल रहा था। वह भी पूरा नहीं हो सका है। नए अस्पतालों का भी काम शुरू नहीं हो सका है। दिल्ली में इस समय 20 हजार बेड की कमी है। इसके लिए अस्पतालों का ढांचा खड़ा करना होगा। अन्यथा दिल्ली की जनता को बड़ी परेशानी होगी। दिल्ली की जनता आज भी एक-एक बेड पर दो मरीजों के हिसाब से भर्ती होने को मजबूर है। हालांकि, दिल्ली सरकार ने अंतिम वर्ष में अस्पतालों के री-मॉडल (पुनर्विकसित) करने की योजनाओं पर आठ अस्पतालों में काम शुरू किया था। चार अन्य अस्पतालों के निर्माण की टेंडर प्रक्रिया पूरी की गई है। इतना ही नहीं तीन नए अस्पतालों की योजना को खर्च एवं वित्त समिति से मंजूरी मिल गई है। मगर सवाल यही है कि यदि काम पहले शुरू हो पाते तो अब तक यह योजनाएं पूरी हो चुकी होतीं।

द्वारका अस्पताल भी नहीं हो सका तैयार

दक्षिणी-पश्चिम दिल्ली के द्वारका में निर्माणाधीन 1241 बेड वाले इंदिरा गांधी सुपर मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल पर पिछले पांच साल से काम चल रहा है। 85 प्रतिशत निर्माण कार्य अब तक पूरा हो सका है। इसके न बन पाने से द्वारका, मधु विहार, राजनगर व पालम कॉलोनी आदि इलाकों के लाखों लोगों के लिए इस क्षेत्र में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है। वर्तमान में द्वारका से 9 किलोमीटर की दूरी पर जनकपुरी में सरकारी अस्पताल है। जिससे लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

नहीं बन सका बुराड़ी अस्पताल 

बुराड़ी में निर्माणाधीन 772 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य भी दिल्ली सरकार पूरा नहीं करा सकी है। बुराड़ी में बनने वाले 200 बिस्तर वाले अस्पताल की क्षमता को बढ़ाकर 772 बिस्तर करने की घोषणा करते हुए योजना का शिलान्यास किया गया था। पूर्व की योजना के तहत अगस्त 2015 में ही 200 बिस्तर की क्षमता वाले अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य तय था। लेकिन इसके बाद इसमें बिस्तर हालांकि, इस अस्पताल की योजना की नींव 8 अक्तूबर 2008 को ही रख दी गई थी। उस समय कांग्रेस की सरकार थी तब यह योजना 100 बिस्तर की थी। 

250 एमजीडी पानी और मिले तब बने बात 

पानी के मामले में सुधार के बावजूद अभी करीब 250 एमजीडी पानी प्रतिदिन की कमी है। इससे राजधानी की एक बड़ी आबादी को पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है। गर्मी के दिनों में यह समस्या और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में आने वाले समय में पानी के क्षेत्र में ढांचागत विकास के मामले में तेजी से काम करना होगा। ताकि, टैंकर माफिया का नेटवर्क तोड़ा जा सके और गंदे पानी की समस्या से भी लोगों को निजात मिल सके। पिछले कुछ दिनों से गंदे पानी की आपूर्ति को लेकर दिल्ली सरकार कटघरे में है। 

विपक्ष का कहना है:

मुकेश शर्मा, मुख्य प्रवक्तादिल्ली कांग्रेस:

"केजरीवाल सरकार ने विज्ञापनों में ही विकास कार्य कराए हैं। सही मायने में पांच साल में विकास कार्य ठप हुए हैं। दिल्ली सरकार पहले केंद्र सरकार के साथ लड़ती रही। आधा समय इस सरकार ने ऐसे ही गुजार दिया। बाद के समय में भी काम नहीं हुआ। सरकार सिर्फ आंकड़े गिनाती है। आज भी दिल्ली में ग्रामीण इलाकों में बिजली का बुरा हाल है। टैंकर माफिया का दिल्ली में कब्जा है। पानी की पाइपलाइनें कागजों में ही पड़ी हैं। जहां लाइनें पड़ीं उनमें पानी नहीं आता है। अस्पतालों में एक बेड पर दो-दो मरीज भर्ती होते हैं।" (जागरण से साभार)

हरीश खुराना, प्रवक्ता दिल्ली भाजपा:

"ढांचागत विकास के मामले में यह सरकार फेल रही है। शीला सरकार के समय भी बिजली कंपनियों की चांदी थी, उस समय 6 सौ करोड़ की सब्सिडी इन कंपनियों को दी जा रही थी। यही केजरीवाल और उनकी सरकार में बैठे लोग तब शीला सरकार को चोर कहते थे। अब यही केजरीवाल सरकार बिजली कंपनियों को 18 सौ करोड़ की सब्सिडी दे रही है। पानी के क्षेत्र में भी यही स्थिति है। जनता को जहरीला पानी पिलाया जा रहा है। केजरीवाल सरकार फर्जी आंकड़े दिखाने में माहिर है। नीति आयोग ने सरकारों के कार्य का आकलन करते हुए एक में बढ़त दिखाई तो पीठ ठोक रहे हैं और जिसमें फिसड्डी रहे, उसे नहीं बता रहे। न ही स्कूल सुधरे हैं और न ही अस्पताल बन पाए हैं। " (जागरण से साभार)

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